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स॒त्यमिद्वा उ॑ अश्विना यु॒वामा॑हुर्मयो॒भुवा॑। ता याम॑न्याम॒हूत॑मा॒ याम॒न्ना मृ॑ळ॒यत्त॑मा ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satyam id vā u aśvinā yuvām āhur mayobhuvā | tā yāman yāmahūtamā yāmann ā mṛḻayattamā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्यम्। इत्। वै। ऊँ॒ इति॑। अ॒श्वि॒ना॒। यु॒वाम्। आ॒हुः॒। म॒यः॒ऽभुवा॑। ता। याम॑न्। या॒म॒ऽहूत॑मा। याम॑न्। आ। मृ॒ळ॒यत्ऽत॑मा ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:73» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मयोभुवा) सुखकारक (अश्विना) अन्तरिक्ष और पृथिवी के सदृश अध्यापक और उपदेशक जनो ! जो (युवाम्) आप दोनों (यामहूतमा) प्रहरों को बुलानेवाले अत्यन्त (यामन्) प्रहर में (आ, मृळयत्तमा) सब ओर से अतीव सुखकारकों को (आहुः) कहते हैं (ता) वे दोनों (यामन्) प्रहर में (वै) निश्चय (सत्यम्) यथार्थ व्यवहार वा जल को (उ) तर्क के साथ (इत्) भी प्रचारित कीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - जैसे भूमि और मेघ सब प्राणियों के सुखकारक हैं, वैसे ही अध्यापक और उपदेशक जन अत्यन्त सुखकारक हों ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मयोभुवाऽश्विना ! यौ युवां यामहूतमा यामन्नामृळयत्तमा आहुस्ता यामन् वै सत्यमु इत्प्रचारयेतम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्यम्) यथार्थं व्यवहारमुदकं वा (इत्) अपि (वै) निश्चये (उ) वितर्के (अश्विना) द्यावापृथिव्याविवाध्यापकोपदेशकौ (युवाम्) (आहुः) कथयन्ति (मयोभुवा) सुखं भावुकौ (ता) तौ (यामन्) यामनि प्रहरादौ (यामहूतमा) यौ यामानाह्वयतस्तावतिशयितौ (यामन्) यामनि (आ) (मृळयत्तमा) अत्यन्तसुखकारकौ ॥९॥
भावार्थभाषाः - यथा भूमिमेघौ सर्वेषां प्राणिनां सुखकरौ वर्त्तेते तथैवाध्यापकोपदेशकौ भृशं सुखकरौ भवेताम् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी भूमी व मेघ सर्व प्राण्यांना सुखकारक असतात. तसेच अध्यापक व उपदेशक सुखकारक व्हावेत. ॥ ९ ॥